The Theory of Relativity: A Philosophical Link with Hinduism
अल्बर्ट आइंस्टीन की Theory of Relativity का सिद्धांत ब्रह्मांड के मूलभूत सिद्धांतों के बारे में हमारी समझ में क्रांतिकारी बदलाव लाने में मदद करता है। तब से यह जगह, समय और गुरुत्वाकर्षण के बीच जुड़े हुए संबंधो का वर्णन करता है। हलाकि यह सिद्धांत नविन विज्ञान मैं प्रयोग मैं आता हैं, परन्तु हमारे हिन्दू धर्म में इन अवधारणाओं का वर्णन हज़ारो साल पहले ही हो गया हैं। हिन्दू धर्म और विज्ञानं में Theory ऑफ़ Relativity के बीच कुछ दिलचस्प समानताएं खींची जा सकती हैं। यह लेख आपको उन समानताओं को उजागर करने में मदद करेगा और साथ ही यह भी बतलाएगा की कैसे सनातन धर्म पूर्णता विज्ञानं पर आधारित हैं, या यूँ कहें की विज्ञानं की जेड सनातन धर्म की पुस्तकों से ही निकली हैं।
अंतर्संबंध का सिद्धांत (The Principle of Interconnectedness)
Theory of Relativity का सिद्धांत कहता है कि ब्रह्मांड में सब कुछ आपस में जुड़ा हुआ है, और जगह और समय की धारणा पर्यवेक्षक के देखने के संदर्भ पर निर्भर करती हैं। इसी तरह, हिंदू धर्म “ब्राह्म” – सार्वभौमिक, ब्रह्मांडीय चेतना – की अवधारणा के माध्यम से सभी अस्तित्व के आपस मैं जुड़े होने पर जोर देता है। उपनिषद, प्राचीन हिंदू ग्रंथ, अक्सर उल्लेख करते हैं कि ब्रह्मांड में सब कुछ एक दूसरे से कैसे जुड़ा हुआ है।
संदर्भ:
“छांदोग्य उपनिषद” – श्लोक 6.8.7

समय का फैलाव और समय की चक्रीय प्रकृति ( Time Dilation and Cyclic Nature of Time )
आइंस्टीन के सिद्धांत से पता चलता है कि समय स्थिर नहीं है, बल्कि सापेक्ष गति ( Relative motion ) और गुरुत्वाकर्षण क्षेत्रों के आधार पर विस्तार के अधीन है। तेज़ गति से चलने वाली वस्तुएँ आराम की तुलना में समय का अनुभव अलग ढंग से करती हैं। यह विचार हिंदू ब्रह्मांड विज्ञान में समय की चक्रीय प्रकृति के अनुरूप है। हिंदू मान्यता के अनुसार, समय चक्रीय है, प्रत्येक चक्र में चार युग होते हैं – सत्य युग, त्रेता युग, द्वापर युग और कलि युग। ये युग अलग-अलग अवधियों से मेल खाते हैं और माना जाता है कि ये अनिश्चित काल तक दोहराए जाते हैं।
संदर्भ:
“भगवद गीता” – अध्याय 8, श्लोक 17
द्रव्यमान-ऊर्जा तुल्यता और समस्त सृजन की एकता (Mass-Energy Equivalence and Unity of All Creation)
Theory ऑफ़ Relativity के सिद्धांत के प्रमुख पहलुओं में से एक प्रसिद्ध समीकरण E=mc^2 है, जो द्रव्यमान(Mass ) और ऊर्जा (Energy) की समानता को दर्शाता है। हिंदू धर्म में, “ब्रह्म” की अवधारणा के माध्यम से एकता की धारणा पर जोर दिया जाता है, जो सबके अस्तित्व के ाककरण को दर्शाता हैं। जैसे ब्रह्माण्ड मैं ऊर्जा का मुख्य स्त्रोत ब्रह्म को बताया गया हैं और कहा गया हैं की सब शारीरिक ऊर्जा अपना जेवण यापन करके फिर उसी ऊर्जा के स्त्रोत में मिल जाती हैं।
संदर्भ:
“बृहदारण्यक उपनिषद” – श्लोक 1.4.10
प्रकाश और माया का गुरुत्वाकर्षण झुकाव (भ्रम) Gravitational Bending of Light and Maya (Illusion)

आइंस्टीन का सिद्धांत भविष्यवाणी करता है कि विशाल वस्तुएँ प्रकाश के पथ को मोड़ सकती हैं, जिसकी प्रायोगिक पुष्टि हो चुकी है। प्रकाश का यह झुकाव “माया” की हिंदू अवधारणा के समानांतर है, जो भौतिक संसार की भ्रामक प्रकृति को संदर्भित करता है। हिंदू दर्शन के अनुसार, भौतिक संसार एक क्षणिक और भ्रामक वास्तविकता है, गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र के कारण प्रकाश के झुकने की तरह। इसका वर्णन श्री कृष्णा ने महाभारत युद्ध के दौरान किया था जब उन्होंने अर्जुन से कहा था की माया रुपी दुनिया में कर्म ही श्रेष्ठ हैं।
संदर्भ:
“श्रीमद्भागवतम्” – सर्ग 11, अध्याय 14, श्लोक 27

निष्कर्ष
Theory of Relativity का सिद्धांत एक उल्लेखनीय वैज्ञानिक उपलब्धि है, जिसने ब्रह्मांड के बारे में हमारी समझ को नया आकार दिया है। यह ब्रह्मांड की अंतर्संबंधता, समय और स्थान की सापेक्षता और समस्त सृष्टि की एकता को प्रकट करता है। दिलचस्प बात यह है कि ये सिद्धांत हिंदू धर्म की कुछ दार्शनिक अवधारणाओं से मेल खाते हैं, जो अस्तित्व की परस्पर जुड़ी प्रकृति, समय की चक्रीय प्रकृति, सभी सृष्टि की एकता और भौतिक दुनिया की भ्रामक प्रकृति पर जोर देते हैं।
By:-
Prakhar Sharma
Founder, Upgrading India